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13 जून कैलेंडर की एक महत्वपूर्ण तारीख है। इसी दिन साल 1999 को कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सैनिकों ने तोलोलिंग की चोटी पर कब्जा कर दुश्मन को अपनी ताकत का एहसास करा दिया था। इतिहास के पन्नों में इस संघर्ष को तोलोलिंग युद्ध के नाम से जाना जाता है।

इस युद्ध की शुरुआत 20 मई 1999 को हुई। करगिल के ड्रास सेक्टर में तैनात 18 ग्रेनिडयर्स को तोलोलिंग की चोटी पर भारतीय तिरंगे फहराने का आदेश मिला। तोलोलिंग, श्रीनगर- लेह राजमार्ग की एक प्रमुख कड़ी थी, जिस पर कब्जा किए बिना दुश्मन को पीछे धकेलना आसान नहीं था।

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मसलन हजारों फीट की ऊंचाई और ठंड को मात देने के लिए 18 ग्रेनेडियर्ज ने अपने कदम बढ़ा दिए। जानकारी के मुताबकि चार से पांच की संख्या में घुसपैठियों ने तोलोलिंग पर कब्जा कर रखा था। वो चोटी के टॉप पर थे। इस कारण उनकी स्थिति मजबूत थी।

वह भारतीय सेना की हर हरकत पर नज़र रख सकता थे। उनके द्वारा फेका गया एक पत्थर भी बड़ा नुकसान कर सकता था। हालांकि, ये मुश्किलें भारतीय जवनों के जज्बे के आगे बहुत छोटी थीं। दूसरी तरफ तोलोलिंग की चढ़ाई एकदम खड़ी थी।

भारतीय जवान ज्यादा वजन के साथ अपने अभियान के लिए नहीं जा सकते थे। उन्हें दुश्मन का सामना करने के लिए ज्यादा से ज्यादा गोला बारूद साथ ले जाने की जरूरत है। ऐसे में करीब 2 किलो भोजन के पैकेट की जगह वह अपने साथ गोला-बारूद लेकर गए।

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भारतीय जवानों ने चढ़ाई शुरु ही की थी कि दुश्मन को उनकी आहट हो गई। हैरान कर देने वाली बात तो यह थी कि चोटी पर 4-5 घुसपैठिए नहीं, बल्कि पूरी की पूरी एक कंपनी मौजूद थी। फिर जिसका डर था वहीं हुआ। दुश्मन की तरफ से गोला-बारी शुरु हो गई। जिसमें 18 ग्रेनेडियर्ज के करीब 25 जवान शहीद हो गए। इसमें मेजर राजेश अधिकारी भी शामिल थे।

इस मुश्किल वक्त में कुशल ठाकुर ने मोर्चा संभाला। यूनिट के दूसरे सीनियर अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल विश्वनाथन भी उनके साथ हो लिए। पूरी प्लानिंग के साथ 2 और 3 जून को फिर से दुश्मन पर हमला बोला गया। मगर सफलता नहीं मिली। हमारा बड़ा नुकसान भी हुआ।

मसलन 2 राजपूताना रायफल को आगे किया गया। मेजर विवेक गुप्ता इसका नेतृत्व कर रहे थे। वह करीब 90 साथियों के साथ अंतिम हमले के लिए आगे बढ़े। यह पलटन प्वाइंट 4950 को अपने कब्जे में लेने के आखिरी चरण में थी। इसी बीच 12 जून को दुश्मन ने गोलाबारी तेज कर दी गई।

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यह देखकर हवलदार यश वीर सिंह ग्रेनेड के साथ पाकिस्तान के बंकरों पर टूट पड़े और उन्हें नेस्तानाबूद कर दिया। अफसोस वह खुद भी नहीं बचा सके। खैर, इस मूव के साथ ही भारतीय सेना दुश्मन पर हावी हो गई। अंतत: 13 जून 1999 को तोलोलिंग पर भारतीय तिरंगा फहराया।

हालांकि, इसके लिए उसे एक बड़ी संख्या में अपने जवानों की आहुति देनी पड़ी। यहां तक कि लेफ्टिनेंट कर्नल विश्वनाथन भी वीरगति को प्राप्त हुए। मरणोपरांत उन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया गया था। वहीं ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर को युद्ध सेवा मेडल दिया गया था।

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उनके अलावा 18 ग्रेनेडियर्ज को अन्य 52 वीरता सम्मानों मिले। ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किए गए हवलदार योगेन्द्र यादव इसी यूनिट का हिस्सा रहे। अगली कड़ी में भारतीय सेना ने टाइगर हिल को टारगेट किया। इस पर 3-4 जुलाई को कब्जा किया गया। फिर करगिल की जंग जीतकर भारतीय सेना ने सभी को गर्व का अनुभव कराया। शहीदों को शत-शत नमन।

Input/ Indiatimes hindi

Rishav Roy, a journalist with four years of expertise, excels in content writing, news analysis, and cutting-edge ground reporting. His commitment to delivering accurate and compelling stories sets him...