शिक्षकों से लेकर माता-पिता तक हर कोई बच्चों को ये कह कर डराते हैं कि ‘पढ़ोगे नहीं तो फलाना समान बेचोगे.’ इस भ्रांति में समाहित होकर बच्चों को एक तरह का डर दिया जाता है कि सरकारी नौकरी से बड़े पद और सुविधाओं के लिए सम्मान की खोज में लग जाएंगे।

सत्य प्रकाश शर्मा ने इसी भ्रांति को तोड़ते हुए अपनी सरकारी नौकरी छोड़ी और अपनी दुकान में समोसे, कचौड़ी और पकौड़े बेचने का काम शुरू किया। आज वह खुद को सफल व्यवसायी मानते हैं।

उन्हें यह विचार आया कि सरकारी नौकरी में तो उन्हें बच्चों को पढ़ने के लिए अधिक पैसे और सुविधाएं मिलती थी, लेकिन उन्हें उसमें समानता नहीं दिखाई दी। उन्होंने महसूस किया कि वह अपनी क्षमताओं को बेहतर तरीके से उपयोग करके अपने सपनों को पूरा कर सकते हैं।

उनकी मेहनत और संघर्ष ने उन्हें उस स्थान तक पहुंचाया है जहां वह अब अपने बच्चों के पैरों के सामने सफलता का परिचय करते हैं। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि हमें सपनों की पूर्ति के लिए सरकारी नौकरी के आकर्षण से परे देखना चाहिए, और अपनी मेहनत और उत्साह से अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयास करना चाहिए।

Rishav Roy, a journalist with four years of expertise, excels in content writing, news analysis, and cutting-edge ground reporting. His commitment to delivering accurate and compelling stories sets him...